वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्रे - पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए नवरात्र के पावन पर्व में पूजी जाने वाली नौ दुर्गाओं में सर्व प्रथम भगवती शैलपुत्री का नाम आता है। पर्व के पहले दिन बैल पर सवार भगवती मां के पूजन-अर्चना का विधान है। मां के दाहिने हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में पैदा हुई थीं। उस समय इनका नाम सती रखा गया। इनका विवाह शंकर जी से हुआ था। शैलपुत्री देवी समस्त शक्तियों की स्वामिनी हैं। योगी और साधकजन नवरात्र के पहले दिन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं और योग साधना का यहीं से प्रारंभ होना कहा गया है।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्रे - पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए नवरात्र के पावन पर्व में पूजी जाने वाली नौ दुर्गाओं में सर्व प्रथम भगवती शैलपुत्री का नाम आता है। पर्व के पहले दिन बैल पर सवार भगवती मां के पूजन-अर्चना का विधान है। मां के दाहिने हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में पैदा हुई थीं। उस समय इनका नाम सती रखा गया। इनका विवाह शंकर जी से हुआ था। शैलपुत्री देवी समस्त शक्तियों की स्वामिनी हैं। योगी और साधकजन नवरात्र के पहले दिन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं और योग साधना का यहीं से प्रारंभ होना कहा गया है।
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