चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।
नवरात्र के पावन समय में छठवें दिन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को प्रदान करने वाली भगवती कात्यायनी की पूजा वंदना का विधान है। साधक , आराधक जन इस दिन मां का स्मरण करते हुए अपने मन को आज्ञा चक्र में समाहित करते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का बडा महत्व होता है। मां की षष्ठम् शक्ति कात्यायनी नाम का रहस्य है। एक कत नाम के ऋषि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए उनके कठोर तपस्या के फलस्वरूप उनकी इच्छानुसार भगवती ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया।
भगवती कात्यायनी ने शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और महिषासुर का वध किया था। इसी कारण छठी देवी का नाम कात्यायनी पडा। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ वर मुद्रा में, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में, तीसरे हाथ में सुंदर कमल पुष्प और चौथे हाथ में खड्ग धारण किए हुए हैं। मां सिंह पर सवार हैं। जो मनुष्य मन, कर्म व वचन से मां की उपासना करते हैं उन्हें मां धन-धान्य से परिपूर्ण एवं भयमुक्त करती हैं।
नवरात्र का छठा दिन भगवती कात्यायनी की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन आज्ञा चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके कात्यायनी स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
भगवती दुर्गा के छठें रूप का नाम कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन उन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला वरमुद्रा में, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प तथा नीचे वाले हाथ में तलवार है। इनका वाहन सिंह है। दुर्गा पूजा के छठवें दिन इनके इसी स्वरुप की उपासना की जाती है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फ़लों की प्राप्ति हो जाती है।
नवरात्र के पावन समय में छठवें दिन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को प्रदान करने वाली भगवती कात्यायनी की पूजा वंदना का विधान है। साधक , आराधक जन इस दिन मां का स्मरण करते हुए अपने मन को आज्ञा चक्र में समाहित करते हैं। योग साधना में आज्ञा चक्र का बडा महत्व होता है। मां की षष्ठम् शक्ति कात्यायनी नाम का रहस्य है। एक कत नाम के ऋषि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए इन्हीं कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन हुए उनके कठोर तपस्या के फलस्वरूप उनकी इच्छानुसार भगवती ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया।
भगवती कात्यायनी ने शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक ऋषि कात्यायन की पूजा ग्रहण की और महिषासुर का वध किया था। इसी कारण छठी देवी का नाम कात्यायनी पडा। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत विशाल एवं दिव्य है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ वर मुद्रा में, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में, तीसरे हाथ में सुंदर कमल पुष्प और चौथे हाथ में खड्ग धारण किए हुए हैं। मां सिंह पर सवार हैं। जो मनुष्य मन, कर्म व वचन से मां की उपासना करते हैं उन्हें मां धन-धान्य से परिपूर्ण एवं भयमुक्त करती हैं।
नवरात्र का छठा दिन भगवती कात्यायनी की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन आज्ञा चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके कात्यायनी स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
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