Saturday, 18 July 2015

स्कन्दमाता (पाँचवाँ रूप)

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥


भगवती दुर्गा के पाँचवे स्वरुप को स्कन्दमाता के रुप में माना जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात् कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता कहते हैं। स्कन्दमातृस्वरुपिणी देवी की चार भुजाएँ हैं। ये दाहिनी तरफ़ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बायीं तरफ़ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है। उसमें भी कमल-पुष्प ली हुई हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। नवरात्रे - पूजन के पाँचवे दिन इन्ही माता की उपासना की जाती है। स्कन्द माता की उपासना से बालरुप स्कन्द भगवान की उपासना स्वयं हो जाती है।
माँ स्कन्द माता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।

नवरात्र के पुण्य पर्व पर पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा, अर्चना एवं साधना का विधान वर्णित है। मां के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। पांचवें दिन की पूजा साधना में साधक अपने मन-मस्तिष्क का विशुद्ध चक्र में स्थित करते हैं। स्कंद माता स्वरूपिणी भगवती की चार भुजाएं हैं। सिंहारूढा मां पूर्णत: शुभ हैं। साधक मां की आराधना में निरत रहकर निर्मल चैतन्य रूप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन भौतिक काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद (अहंकार) से मुक्ति प्राप्त करता है तथा पद्मासना मां के श्री चरण कमलों में समाहित हो जाता है। मां की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है। मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है। साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है।

  मां की उपासना के साथ ही भगवान स्कंद की उपासना स्वयं ही पूर्ण हो जाती है। क्योंकि भगवान बालस्वरूप में सदा ही अपनी मां की गोद में विराजमान रहते हैं। भवसागर के दु:खों से छुटकारा पाने के लिए इससे दूसरा सुलभ साधन कोई नहीं है।
  नवरात्र का पांचवां दिन भगवती स्कन्दमाता की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से भगवती की अनुकंपा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं। कुंडलिनी जागरण के साधक इस दिन विशुद्ध चक्र को जाग्रत करने की साधना करते हैं। वे गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञान विधि का प्रयोग कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर शास्त्रोक्त फल प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं। जगदम्बा भगवती के उपासक श्रद्धा भाव से उनके स्कंदमाता स्वरूप की पूजा कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करते हैं।
  विशुद्ध चक्र पर शनि ग्रह का आधिपत्य होता है। इसका लोक - जन लोक, मातृ देवी - कौमारी, देवता - सदाशिव (व्योमनेश्वर और व्योमनेश्वरी), तन्मात्रा - ध्वनि, तत्व - आकाश, इसका स्थान कण्ठ में होता है और अधिष्ठात्री देवी - शाकिनी/गौरी (वाणी) है। प्रभाव - यह वाणी का क्षेत्र है इसलिए यहाँ सबसे ज्यादा ऊर्जा की क्षति होती है।

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